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झारखण्ड : जनजातीय समुदाय की मिटती पहचान को बचाने में हेमन्त के कुशल कदम

August 10, 2022 by najhma Leave a Comment

झारखण्ड : जनजातीय समुदाय की मिटती पहचान को बचाने के प्रयास में न केवल झामुमो विचारधारा की दृढ़ इच्छाशक्ति, एक आदिवासी मुख्यमंत्री के भीतर निहित सामाजिक संघर्ष कुशलता से आगे बढ़ता भी दिखता है…

रांची। देश में हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना के बीच हासिए पर खड़े आदिवासी, दलित, पिछड़ों व गरीब वर्ग की पहचान को बचाने की कवायद मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का कार्यकाल करता दिखता है. और इस मंशा के अक्स में झारखण्ड में आयोजित जनजातीय महोत्सव, निश्चित रूप से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के विचारधारा की दृढ़ इच्छाशक्ति और एक आदिवासी मुख्यमंत्री के भीतर निहित सामाजिक संघर्ष के जुझारूपन कुशलता से आगे बढ़ता दिखता है. 

जनजातीय भाषाओं, संस्कृति और परंपराओं के विशेषज्ञों की चर्चा में गूँजे कि “किवंदती किताबों की कहानियों का अहम हिस्सा बन जाती हैं, क्योंकि किवंदती, कथाएं झुर्रियों से झांकती जुबां से आती हैं, जिन्होंने पल-पल प्रकृति में खुद को महसूस किया है और प्रकृति को ही अपना इष्ट माना है”. और जनजातीय साहित्य, इतिहास, दर्शन को मनुष्य जाति के विकास में जनजातीय समुदाय के महत्व का सच सामने रखा जाए, तो निश्चित रूप से मानवता व मनुष्यता को परिभाषा मे कार्यकरम को मील का पत्थर माना जा सकता है. 

ट्राइबल लिट्रेचर व ट्राइबल एन्थ्रोपोलॉजी सेमीनार 

आयोजित सेमीनार में जनजातीय परंपराओं के जानकार द्वारा जनजातीय समुदाय का पहाड़ों, नदियों और जंगलों से अटूट रिश्ता पर व्याख्यान. प्रो. जनारदन गोण्ड (प्रयागराज), कविता करमाकर (असम), संतोष कुमार सोनकर, बिनोद कुमार (कल्याण, मुम्बई), दिनकर कुमार (गुवाहाटी), अरूण कुमार उरॉव (जेएऩयू, नई दिल्ली), हेमंत दलपती (ओडिशा), सानता नायक (कर्नाटक), रूद्र चरण मांझी (बिहार), डॉ. देवमेत मिंझ (छत्तीसगढ़), कुसुम माधुरी टोप्पो, महादेव टोप्पो और प्रो. पार्वती तिर्की (राँची) आदि साहित्य के विद्वानों की जनजातीय औरा पर चर्चा एक मंच पर संभव हो, तो निश्चित रूप से यह तस्वीर हेमन्त सोरेन की कुशलता व ईमानदार प्रयास को दर्शाता है.

Filed Under: SC-ST-OBC Tagged With: jharkhand, हेमंत सरकार, हेमंत सोरेन

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